इस पुस्तक को पढ़ने के बाद आप यह अनुभव करेंगे कि सांस्कृतिक और भाषाई चेतना को लेकर हमारा देश बेहोशी की सीमा तक गई, गहरी नींद में सोया हुआ है। सोए हुए व्यक्ति को तो यह खबर ही नहीं होती कि वह सोया हुआ है। एक जागा हुआ व्यक्ति ही उसे उठाने का प्रयास कर सकता है। ऐसा ही राष्ट्रप्रेम से भरा प्रयास इस पुस्तक में हुआ है।
■ प्रकाशक
(श्रेष्ठ पुस्तकें, जीवन सँवारें...)
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